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ऐसे वक्त पर आध्यात्मिक होना बेहद सहज है, रामचरितमानस की पंक्तियां "धीरज धर्म मित्र अरु नारी, आपद काल परखिये चारी" वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। ऐसे बुरे वक्त में आपके पास मौका है कि आप उन लोगों की पहचान करें जो आपके सच्चे हितैषी है।
दिन भर की खबरों में नजर आता है कि बेटे ने पिता के संक्रमित होने के बाद उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया, शवों को रिश्तेदार हाथ भी नही लगा रहे, पड़ोसी शक के आधार पर लोगों को बिल्डिंग में घुसने से मना कर रहे है। शायद इसे ही कलियुग कहा गया है जिसमें मनुष्य मनुष्य का साथ नही देगा।
बात यहीं तक सीमित नही है, बल्कि लोग उन मुद्दों पर भी चर्चा कर रहे है जिनसे उनका सीधा-सीधा कोई लेना देना नही है। जो व्यक्ति इस महामारी के चलते काल कवलित हो गए उन्हें भी निशाना बनाया जा रहा है। ताजा उदाहरण आज तक के एंकर रोहित सरदाना को ही ले लीजिए उनकी दुःखद मृत्यु के बाद दलितों के सो काल्ड मसीहा और एक समुदाय विशेष के तथाकथित मठाधीश उनकी मौत को सार्थक और जायज ठहरा रहे है।
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